शनिवार, 5 दिसंबर 2009

शहादत की वकालत

राजनीति की आपाधापी और कुर्शी के लालच ने इंसान को खोखला बना डाला | आज बड़े बड़े राजनेता इस बात पर बहस करते हुए नज़र आते है कि किसे शहादत कहना है और किसे नही कहना है, धर्म और व्यवस्था को तो जैसे मजाक बना डाला हो | तरस आता है मुझे उन धर्माज्ञों ,ऋषियों और मौलवियों पर जिन्होंने धर्म की संरचनाएं कुछ इस ढंग से की हैं कि इंसान इस धर्म के लालच में उन विशेषज्ञों के कहने पर मर मिटने के लिए तैयार है जो राजनीति की कुर्शी पर बैठ कर धर्म के पायदान से होकर गुजरते है और यह भावना जगाते है कि तुम हिन्दू हो , तुम मुशलिम और तुम्हे हमेशा लड़ते ही रहना है | एक तरफ़ तो ये राष्ट्रीय एकता का ढोल पीटते है और दूसरी तरफ़ अयोध्या में सन १९९२ में पनपे बाबरी मस्जिद के विवाद की वकालत आज भी कर रहे है | आप क्या आशाएं लगा सकते है इनसे जो यह कह जाएँ कि १५००० की उस भीड़ में घमाशन दंगे में २००० लोगों की मौत हो जाए और ये राजनेता इन मरे हुए लोगों को शहादत का हार पहना कर चलें जाएँ | हम हिन्दुओं का आक्रोश भले ही खिन्न भिन्न हो गया हो इस शहादत से पर मुझे अभी भी बेहद आक्रोश है इन धर्मज्ञों पर जिन्होंने इन्हे शहादत का ताज पहना दिया | शहीद वो होता है जो बिना किसी धर्म , जाति की परवाह देश को पहुँचने वाले हर आहात से बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दे |

आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ संचालक मोहन भागवत चंडीगढ़ से वकालत करते हुए कहते है कि हमें कोई अफ़सोस नही है बाबरी काण्ड का | मैं इनसे कहना चाहता हूँ कि इन्हे किस बात का अफ़सोस होगा उन दो हज़ार मरे हुए लोगों का या फ़िर उन दंगो का जिन्हें बढावा देने में इन्ही लोगों का सबसे बड़ा हाथ होता है | धर्म की मंचों पर बैठे हुए उन धर्मज्ञों से मैं कहना चाहता हूँ कि अब एलान करना बंद कर दे क्या इतना काफी नही है हमारे देश के लिए जो आज भी अपने लालच के लिए देश की जनता को दीमक की तरह खाए जा रहे है |

देश के सबसे बड़े आतंकी हमले मुम्बई में शहीद हुए मोहतराम शर्मा की शहादत पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले समाजवादी पार्टी के अमर सिंह जी उसकी शहादत को बेक़रार कर देते है और कहते है कि उसने वर्दी नही पहनी हुई थी | इन्हे क्या पता कि वर्दी क्या होती है शहादत क्या होती है | ये वर्दी है कोई राजनीति के उस काले धन के पैसे से खरीदी हुई खादी नही है जिसे पहनकर वकालत कर देते है |

यही सब देखने और सुनने के बाद कहता हूँ ....

रामचरित में अवधपुरी का, जो बखान है किया गया ,
रामराज्य और राम की महिमा का गुणगान है किया गया |
तुलसी के अमृत बचनों से , महाकाव्य है भरा पड़ा ,
मेरा शब्दों का तरकश बस, गहवर में है रिक्त पड़ा |

किंतु इतना कह सकता हूँ, मेरे वतन के लोगों ,
वही अवध अब अवध नही है, समझो जानो लोगो |
हिंदू मुशलिम के विवाद का अंत नही हो सकता है,
यहाँ का राजा राम नही अब रावण ही हो सकता है |

मैं हिंदू परिषद् से पुछु क्यों पागल खूब बनते हो ,
मन्दिर बनवाओ का नारा, क्यों बार बार कह जाते हो ?
राजनीति के दंदभेद क्यों धर्मविधान बनते हो ,
रामनरेश की अवधपुरी श्मशान घाट बनवाते हो ?

राजनीति के शर्मसार को , धर्मविधान बना करके ,
अवधपुरी में मन्दिर का व्यंग्य प्रसंग जाता करके |
राजनीति में ये अपना , जड़ अस्तित्व बनाएँगे ,
राजनीति में ये ही तो अग्रग्रंद्य करारे जायेंगे |

मैं राजनीति को क्या क्या कह दूँ उपमाओं का अंत नहीं ,
राजनीति के रखवाले है , अभिनेता तो संत कहीं |
राजनीति में अभिनेता अब अभिनय करने आयेंगे ,
और हमारे संत महात्मा पूजा पाठ रचाएंगे |

राजनीति के नेता ये आवास सांत्वना देते हैं,
ताकि जनमत को आसानी से नेता हर लेते है |
ईश्वर को आवास नही फ़िर कहा हमें मिल पाएगा,
मेरे शब्दों का शरचाप यही पर धरणी में गिर जाएगा |


गुरुवार, 26 नवंबर 2009

ख्वाबों की मलिका नहीं है तो,परियों का आना वाकी है|

खाना छोड़ दिया मैंने,
और सोना छोड़ दिया मैंने ,
उनका नशा अनोखा था ,
मैखाना छोड़ दिया मैंने |

अब कोरी धुंधली यादों में,
विस्तर को तोड़ रहा हूँ मैं,
पलकों की भीगी छाया में,
आंसू को छोड़ रहा हूँ मैं |

जब टूट रहे हैं तारे तो ,
गिरने से कौन बचाएगा?
जब छूट रहे है सारे तो,
मैखाने कोन न जायेगा ?

क्षितिज हमें अब ढूढ़ रहा है,
आसमान की काया में ,
धरती के झूठे घेरे में ,
अम्बर की नीली छाया में |

पर पता नहीं मुझको भी,
मैं कहाँ बिचरनित करता हूँ ?
उनके सपनो में या यादों में,
बाहर आने से डरता हूँ |

तुम कहीं पता मत दे देना,
मैं जीते जी मर जाऊँगा,
उनकी यादों के बल पर,
मैं नया जहान बनाऊँगा |

तुम डरो नहीं, मैं खो जाऊं,
मेरे संग अपना साकी है ,
ख्वाबों की मलिका नहीं है तो,
परियों का आना वाकी है|

बुधवार, 18 नवंबर 2009

इसे पढना आपकी जिम्मेदारी ही नही बल्कि मजबूरी भी है ....


ये एक ऐसा पोथा है जिसे पढ़ना आपकी जिम्मेदारी ही नही बल्कि मजबूरी है जिसमें दफ़न है गरीबी भुखमरी और कई ऐसी पीड़ित जिंदगियां जिनके बारें में सोचना हमारी मजबूरी बन गई है |आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि एक इंजीनियरिंग का क्षात्र इस तरह की घिसी पिटी वकवास क्यों कर रहा है , तो इसमें हैरत की कोई बात नही क्योंकि तकनीकी सिर्फ़ उन गोरे सेठों का ही मुह नही ताक रही जिनके एक इशारे पर सारा युवा नांच रहा है | तकनीकी उन मुरझाए हुए चेहरे को भी देख रही है जिनकी आँखे बड़ा सपना देखने का हुनर पाल रही है , तकनीकी सूखे और बंजर खेत एवं भूखे और लाचार पेटों का भी मुह ताक रही है या फ़िर इसका उल्टा है | मैं ऊपर दिखाए गए चित्र पर बिल्कुल टिप्पड़ी नहीं करूँगा, क्योंकि चित्र अपने आप में ही स्पस्टीकरण है |

अफ्रीका, चीन, भारत और अमरीका के अनाज उत्पादन से जुड़े कुछ आंकड़े इस बात पर सोचने के लिए आपको मजबूर जरुर कर देंगे कि गोरे सेठों की दूकान पर बैठ कर काम करूँ या फ़िर अपना काम जिसे हम हीन भावना से देखते है


उक्त जानकारी के अनुसार मैं यही सिद्ध करना चाहता हूँ कि तकनीकी का प्रयोग भरपूर तरीके से कृषि में भी किया जाना चाहिए | लेकिन बिडम्बना यही है कि हर कंप्यूटर इंजिनियर बिल गेट्स बनाना चाहता है | मैं आज इस पोथे के माध्यम से यही कहना चाहता हूँ कि हमें कृषि की तरफ़ भी अधिक ध्यान देना चाहिए | क्योंकि गरीबी का सबसे बड़ा कारण यही है |

परन्तु भारत की मूल धारा से हमें एक विशेष षड़यंत्र के तहत अलग करने का काम राजनीति कर रही है , हर युवा को यह बात समझनी होगी और इसका मुह तोड़ जवाब देना होगा क्योंकि भारत का विकास करना सिर्फ़ हमारा कर्तव्य है बल्कि इसको शिखर पर पहुंचाने का हुनर भी युवा की खूबी है जिसे राजनीति बखूबी अपने मकसद को पूरा करने के काम में ला रही है |

मेरे साथियो मैं बहुत अधिक जानकारी अपने ब्लॉग के माध्यम से नही दे पाउँगा, मैं आपसे गुजारिश करता हूँ कि आप इन्टरनेट पर समय बिताते समय भारत में कृषि को विकसित करने के उपाय ढूदे और इस तरफ भरपूर ध्यान दे तो निश्चित रूप से ऐसे आंकड़े मिलेंगे जिससे आपका दिल दहल जाएगा | बस इतना और कहूँगा कि हमारी इस बात को अपनी बात बना लो और सारे जहाँ में तूफ़ान की तरह फैला दो |

धन्यबाद !

-रवि शंकर शर्मा

बुधवार, 11 नवंबर 2009

मेरी आशा निराशा के रूप में ...

रात के अंधेरे में जब एक बूँद भी आँसू की नही निकली, तब पता लगा की हमारे दिल की धड़कन इतनी तेज है कि जिसकी आवाज़ से सोना दूभर हो गया | मुझे पता है कि सोना इतना आसान नही होता है, न तुम्हारे लिए न मेरे लिए , कम्वक्त ये रात बनाई ही गई है सोने के लिए | पलक झपकते ही दिल इस तरह दहाड़े मारता है, मानो भूकंप आ गया हो |

ये मेरे निराश होने कि कहानी नही है, ये एक आशा है जिसे आप निराशा के नज़रिए से देख सकते हो क्योंकि मैं हूँ ही कुछ ऐसा | जब खाना खाने बैठता हूँ तो लोग इस बात से हैरान हो जाते है कि क्या खाने के इस तरीके से मैं जिंदा रह पाऊंगा ? लोगों को पेट भरकर खाना खाते देख कर पहले मैं इस तरह निराश हो जाता हूँ जैसे एक भूँखा और लाचार कुत्ता रोटी की आस में मालिक के सामने पूँछ हिलाता रहता है और मालिक फ़िर भी उसे रोटी नही खिलाता है | फ़िर रोज़ सुबह मुझे ये सोचना पड़ता है कि आज किस घर में जाऊं जहाँ पर मेरा पेट भर जाए | पर पागल कुत्ते को क्या कोई रोटी खिलाता है ? :)

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मैं ऐसा क्यों हूँ ? यह सब सोच ही रहा था , तभी अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मुझे लगा कि शायद इसी आशा में मैं जाग रहा था , पर वो तुंरत ही निराशा में बदल गई और मैंने फोन कट कर दिया |

मेरे दोस्त सुजिल ने आज ही एथलितिक मीट में गोल्ड मैडल जीता हाई जम्प में और अपना ही रेकोर्ड तोडा | एक क्षण तो ख़याल आया कि दौड़कर मैं ग्राउंड में चला जाऊं पर मेरी मजबूरी ..... :( और एहसास हुआ कि शायद धीरे धीरे हर चीज़ मुझसे अलग हो रही है या फ़िर मैं छोड़ता चला जा रहा हूँ ? यह प्रश्नचिंह मेरे मुखोटे पर हमेशा सज़ा रहता है | जिसके उत्तर के लिए हर कोई निरुत्तर है | वस लोगों के ढाढ़स ने आशा दी है मुझे , जिसे मैं तहे दिल से स्वीकार करता हूँ | और विश्वास रखता हूँ कि यही ढाढ़स सच है और अपने कदमों को हर रोज़ सुबह विस्तार से नीचे रखता हूँ | यही मेरी आशा है :)

बुधवार, 1 जुलाई 2009

कुछ नगमे .... उनकी आवारगी में ...

मोहब्बत की बनी बुनियाद पर, चलता रहा हरदम,
कोई दिलवर नहीं मिलता, यही कहता रहा हरदम |
तुम्हारे इश्क की खामोशियाँ, सहना गवारा है,
गवारा है नही मुझको, अभी चुपचाप यूँ हरदम |

हुस्ने - गुलशन की खुशबू में, मैं अक्सर डूब जाता हूँ,
तुम्हारी मुस्कुराहट से ,मैं अक्सर मुस्कुराता हूँ |
तुम्हें भी इश्क है मुझसे, मगर तुम कह नही सकती,
तुम्हारी ना में भी हाँ को, मैं अक्सर जान जाता हूँ |

जिंदगी के जोश में, शौक से मदहोश रहना ,
और मोहब्बत की अदाओं में हमेशा सुर्ख रहना |
गर अगर तुम जन जाओ, ये जवां धड़कन हमारी ,
भूल जाओगे हमारे , जशनेदिल में होश रखना |

अगर हम रूठ जाते , तो मनाने क्यूँ चले होते ,
बशर्ते इश्क की धड़कन , बताने क्यूँ चले होते |
समझती है निगाहों को, बताती है निगाहों से ,
मगर ये सादगी उनकी, अतः यूँ चुप नही होते |

रवि शंकर शर्मा

शुक्रवार, 5 जून 2009

जेरोक्स की जिंदगी

ये बात कोई याद रखने वाली है क्या, जिसे अब हमने अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया हो | कॉलेज के बाद कॉलेज का कुछ याद रहे या ना रहे पर मैं दो चीजें नही भूल सकता हूँ एक तो बंटी की जेरोक्स की दुकान और दूसरी कोमल के नोट्स जिसे पढ़कर आधी से अधिक क्लास पास होती है | अब ये कोई चौकने वाली बात तो है नही , ये बात सारा उपकरनन एवं नियंत्रण अभियांत्रिकी समाज जानता है कि कोमल ही अब हमारे पास होने का एक मात्र सहारा है | मुझे लगता है बस यह दो बातें है जो हमारी डिग्री पुरी होने में मदद दे रही है | मैं नही भूल सकता हूँ उस पढाकू लड़की को जिसने किताबों के चौराहे पर खड़ी जिंदगी को नोट्स के रूप में एक नई दिशा दी | और यह चेतना जगाई कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जालंधर में पास ही नही बल्कि 8 पॉइंटर बनने के लिए भी नोट्स की ही जरुरत होती है | चाहे उदित हो या दीनू पर कोमल का दरवाजा हर कोई खटखटाता है | इस तरह हमारी जिंदगी जेरोक्स की जिंदगी हो गई , आशय यह है की इंजिनियर कोई और बना , हम तो बस एक इंजिनियर की जेरोक्स कॉपी है |

कोमल की दानवीरता पर एक शेर अर्ज है -------

यह सच है पर दुर्बल मन है, मुझको भी यह सहना था ,
कोमल की आंखों में जाकर, मुझको भी कुछ कहना था |
काश! अगर जेरोक्स कहीं, तुमने दिए होते मुझको ,
मेरी भी एक 5 पॉइंट सम वन, मिलती पढ़ने को सबको |

- रवि शंकर शर्मा


शुक्रवार, 15 मई 2009

युवा वर्ग की युवा सोच

क्या यह सही है ...
ख्वाहिशों की लपट ने मुझे इस तरह दबोच रखा है , कि हमारा अतीत क्या है, हमारा वर्त्तमान क्या है, हमारा शिखर क्या है , हमारा प्रखर क्या है जैसे हम सब भूल गए हो | मैं जब भी अपने अतीत के आँचल में होता हूँ , तो यही सच पाता हूँ कि क्या मैं ऐसा था ? जवाब आपके समक्ष है, जिसे न मैं झुठला सकता हूँ न आप | अब सूरज कि हर नई किरण एक आशा बनकर आती है और एक नई ख्वाहिश का उदय हो जाता है, जो निश्चित रूप से सजग है परन्तु कही दुर्बल राह न पकड़ ले इस बात का डर हमेशा लगा रहता है | मेरी ख्वाहिशों ने मुझे इस तरह बर्बाद कर दिया है कि जहाँ से आबाद होने का रास्ता तो नज़र आता है पर इस लुभावने जगत में उस पर चलना मुश्किल हो जाता है | क्या यही सच है कि हम युवा इसी तरह भटकते रहेंगे ? नही, मैं नही मानता हूँ इस तथ्य को | मुझे कई कहानियाँ सुनाई गई, उन सब में मैंने यही पाया कि युवा होने का तजुरवा हर किसी में नही होता है वरना ये झूठी कहानियाँ हमारे समक्ष सीना ताने नहीं खड़ी होती | समाज कि कूटनीतियों ने युवा के हर कदम को ललकारा है | युवा किसी भी दिशा में बह सकता है , समाज ने युवा की इस खूबी को बखूबी मर्यादाओं का किनारा लेकर गहरी खाडी में डूबा दिया | परन्तु आज भी समाज में यह खूबी हिलोरें ले रही है |

आज हमारा देश आह्वान कर रहा है , हम युवाओं से उम्मीद लगाये बैठा है | क्या यह सच नही है कि आज देश को युवा के हर कदम कि जरूरत है जो निडर भावः से आगे बढते जाते हैं | आज समाज पता नही कितने हिस्सों में टूटता जा रहा है जिसमें जातिवाद सबसे बड़ी समस्या रही है, फ़िर उत्तर भारत और दक्षिण भारत की अनवरत अनवन और उत्तर पूर्वी भारत की अलग होने की मुहीम लगातार देश को खाए जा रही है | राजनीति की आपाधापी ने हिंदू और मुसलमानों के बीच में एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी है जिसे तोड़ना जुर्म बन गया है |

हमारे मां - बाप, रिश्तेदार जहाँ तक कि उच्च शिक्षण संस्थान भी सिगरेट , शराब इन सभी चीज़ों पर हर वक्त प्रताड़ना देते आए हैं निश्चित रूप से ये बुराइयां भी दूर होनी चाहिए परन्तु समाज के उन पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए जो हमारी राष्ट्रीय एकता , अखंडता और विश्वास को अधिक क्षति पहुंचा रहे है |

और अंत में मैं अपनी कविता इस पंक्ति से शरू करता हूँ -
मैं वो अभिमन्यु नही हूँ जो गर्भ में चक्रव्यूह से निकलने की कला सीखते- सीखते सो जाऊं |

युवा वर्ग की युवा सोच
निश्ताब्ध घरौंदों से उठकर, अब जाग उजागर दुनिया में ,
मजबूत बना अहसासों को, कुछ काम दिखा अब दुनिया में |
अब प्रकृति रूठ कर बैठ गई, हम तुम्हें मानाने आए है ,
आशा की नीरश खिड़की से, हम तुहें जगाने आए है |
जागो और उठकर देखो, हम गीत अनोखा गा देंगे ,
युवा वर्ग की युवा सोच को, हम पहचान दिला देंगे |

अब उठने दो आंधी , तूफानों का आना बाजिब है ,
बदल रही मृदु की काया, अब धूल धूसरित बाजिब है |
युग - आरब्ध दीर्घ गतिविधियों के, आजन्म सितारों,
तेज सूर्य की तीव्र किरण सी, अपनी सोच उजारो |
हम अपनी ताकत का , सबको अंजाम दिखाएँगे ,
युवा वर्ग की ................................................////

वक्त वफादारी कब करता, कब रुकता है कहने पर,
मृतु कहाँ है झुकने वाली, राजाओं के कहने पर |
मिटटी का kab जोर चला है, दृणित रुद चट्टानों पर,
नदियों ने कब धार बदल दी, toofanon के आने पर|
हम अपनी अडिग सोच के आगे, हर व्यवधान मिटा देंगे ,
युवा वर्ग की ............................................////

रवि शंकर शर्मा

रविवार, 3 मई 2009

ख्वाहिश

ख्वाहिश
कुछ पंक्तियाँ ...
मेरी आंखों की ख्वाहिश है, उन्हें जीभर के देखूँगा ,
गुलाबी होश में रहकर, उन्हें बेहोश कर दूँगा |
मैं उनकी खूबसूरत सी, निगाहों में लिपट जाऊं ,
जिक्र आंखों का होगा तो, उन्हें मदहोश कर दूँगा |

उन्ही के भावः देखूँ मैं, उन्ही के ख्वाब देखूँ मैं ,
हवा के झोकों में भी तो, उन्ही की रह देखूँ मैं |
मगर हम मिल नही सकते हैं, कैसी अब ये दूरी है,
हमारे पास तो है वक़्त, मगर उनकी मजबूरी है |

अगर जीभर के देखूँ तो, वो कहते क्या जमाना है ,
कोई बहसी कोई रमता, कोई कहता दीवाना है |
मैं उनको प्यार से देखूँ, तो बोलो क्या बुरा करता ,
कि वो तो गैर के संग है, मुझे इतना बताना है |

रवि शंकर शर्मा

रविवार, 19 अप्रैल 2009

ओ लिखने वालो

लिखने वालो
कलम खूब क्या लिखती है, अपने ही खून स्याही से ,
कागज़ के कोरे जीवन को, भरती है मुक्त सदाई से |
लिखने वालों ने स्याही का मतलब और बना डाला ,
भाषा, मजहब, देश निहित में, नंगा नाच नचा डाला |

लिखने वालो तुमसे मेरी , यही गुजारिश है
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, जिसमे गर्भित रंजिश हो |
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, देश धर्म जो गर्हित हो ,
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, जिसमे राष्ट्र विखण्डित हो |

लिख देना तुम जिसमे अपने रिश्तों की परिभाषा हो ,
संस्कृति और सभ्यता को भी जिसमे खूब तराशा हो |
लिख देना तुम जिसमे अपनी मृदु की खुशबू जाए ,
लिख देना तुम कुछ भी ऐसा, राष्ट्र एकता छा जाए |

रवि शंकर शर्मा

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

क्या समझा है पाकिस्तां ने

क्या समझा है पाकिस्तां ने
क्या समझा है पाकिस्तां ने , मेरी भारत माता को ,
भूल गया है बिकल कटक ये माँ बेटे के नाता को |
रामचरित में ठीक लिखा है , महामुनि तुलसी जी ने ,
ये भारत माँ के सपूत थे, जिनको जाया हुलसी ने |
महाकाव्य में लिखा है, उनने ऐसा कलयुग आएगा |
माँ को गाली पिता को लाठी, बेटा खूब लगायेगा |

और लिखा है आगे उनने, भ्रात भ्रात को खायेगा ,
मजहब के पीछे छिप करके, शिष्य गुरु बन जायेगा |
इन्सां रिश्ते नाते भूल के , धन के गुण ही गायेगा ,
दीन दुखियों को कलयुग में, घ्रणा से देखा जायेगा |
यही स्थति पाकिस्तां की, कश्मीर पे उल्टा खाता है ,
भारत माता का कपूत, माँ को गाली दे जाता है |

जो मजहब पर ना चलता है , वही कुफ्र कहलाता है ,
गर्हित होकर वह जगती में, सकल नष्ट हो जाता है |
भूल गया है ये पाकिस्तां, भारत के इतिहास को ,
भगत सिंह और बोष की फौजें, वीरों के आकाश को |
जिनकी एक तबाही से ही, ब्रिटिश हुकूमत भाग उठी ,
तू किस खेत की मूली है, जो काश्मीर पे आँख उठी |

हिम्मत है तो जाओ तुम, समरांगन में लड़ने को ,
भारत माता की मिट्टी में तुम सिर के बल तुम गढ़ने को |
मैं पाकिस्तां को समझाता हूँ पीछे हट जाओ ,
घुसपैठी आतंकबाद को जल्दी ख़तम कराओ |
यदि शेर बहाद्दुर झपट पड़े तो कुछ भी ना बच पायेगा ,
अमरीका का ये चमचा , काफूर कहीं हो जायेगा |

रवि शंकर शर्मा