क्या समझा है पाकिस्तां ने
क्या समझा है पाकिस्तां ने , मेरी भारत माता को ,
भूल गया है बिकल कटक ये माँ बेटे के नाता को |
रामचरित में ठीक लिखा है , महामुनि तुलसी जी ने ,
ये भारत माँ के सपूत थे, जिनको जाया हुलसी ने |
महाकाव्य में लिखा है, उनने ऐसा कलयुग आएगा |
माँ को गाली पिता को लाठी, बेटा खूब लगायेगा |
और लिखा है आगे उनने, भ्रात भ्रात को खायेगा ,
मजहब के पीछे छिप करके, शिष्य गुरु बन जायेगा |
इन्सां रिश्ते नाते भूल के , धन के गुण ही गायेगा ,
दीन व दुखियों को कलयुग में, घ्रणा से देखा जायेगा |
यही स्थति पाकिस्तां की, कश्मीर पे उल्टा खाता है ,
भारत माता का कपूत, माँ को गाली दे जाता है |
जो मजहब पर ना चलता है , वही कुफ्र कहलाता है ,
गर्हित होकर वह जगती में, सकल नष्ट हो जाता है |
भूल गया है ये पाकिस्तां, भारत के इतिहास को ,
भगत सिंह और बोष की फौजें, वीरों के आकाश को |
जिनकी एक तबाही से ही, ब्रिटिश हुकूमत भाग उठी ,
तू किस खेत की मूली है, जो काश्मीर पे आँख उठी |
हिम्मत है तो जाओ तुम, समरांगन में लड़ने को ,
भूल गया है बिकल कटक ये माँ बेटे के नाता को |
रामचरित में ठीक लिखा है , महामुनि तुलसी जी ने ,
ये भारत माँ के सपूत थे, जिनको जाया हुलसी ने |
महाकाव्य में लिखा है, उनने ऐसा कलयुग आएगा |
माँ को गाली पिता को लाठी, बेटा खूब लगायेगा |
और लिखा है आगे उनने, भ्रात भ्रात को खायेगा ,
मजहब के पीछे छिप करके, शिष्य गुरु बन जायेगा |
इन्सां रिश्ते नाते भूल के , धन के गुण ही गायेगा ,
दीन व दुखियों को कलयुग में, घ्रणा से देखा जायेगा |
यही स्थति पाकिस्तां की, कश्मीर पे उल्टा खाता है ,
भारत माता का कपूत, माँ को गाली दे जाता है |
जो मजहब पर ना चलता है , वही कुफ्र कहलाता है ,
गर्हित होकर वह जगती में, सकल नष्ट हो जाता है |
भूल गया है ये पाकिस्तां, भारत के इतिहास को ,
भगत सिंह और बोष की फौजें, वीरों के आकाश को |
जिनकी एक तबाही से ही, ब्रिटिश हुकूमत भाग उठी ,
तू किस खेत की मूली है, जो काश्मीर पे आँख उठी |
हिम्मत है तो जाओ तुम, समरांगन में लड़ने को ,
भारत माता की मिट्टी में तुम सिर के बल तुम गढ़ने को |
मैं पाकिस्तां को समझाता हूँ पीछे हट जाओ ,
मैं पाकिस्तां को समझाता हूँ पीछे हट जाओ ,
घुसपैठी आतंकबाद को जल्दी ख़तम कराओ |
यदि शेर बहाद्दुर झपट पड़े तो कुछ भी ना बच पायेगा ,
अमरीका का ये चमचा , काफूर कहीं हो जायेगा |
यदि शेर बहाद्दुर झपट पड़े तो कुछ भी ना बच पायेगा ,
अमरीका का ये चमचा , काफूर कहीं हो जायेगा |
रवि शंकर शर्मा
रवि शंकर जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना है ...........देश प्रेम से ओत प्रेत रचना...............सही लिखा था तुलसी दास में और आपने भी अपने अंदाज से लिख दिया
आपके नए ब्लॉग की चर्चा मेरे ब्लॉग निरंतर में
जवाब देंहटाएंwah,narayan..narayan...narayan
जवाब देंहटाएंGud work!! keep it up..........
जवाब देंहटाएंचाहे जीवन में फूल खिले
जवाब देंहटाएंपहले काँटों से प्यार करो
जीने की लगन लगी हो तो
पहले मरना स्वीकार करो
खुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
जय हिंद
वा्ह क्या कहने जिती ताीफ़ करे कम है। आपके श्ब्द दिल मे उतर गए। ब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।
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