गुरुवार, 26 नवंबर 2009

ख्वाबों की मलिका नहीं है तो,परियों का आना वाकी है|

खाना छोड़ दिया मैंने,
और सोना छोड़ दिया मैंने ,
उनका नशा अनोखा था ,
मैखाना छोड़ दिया मैंने |

अब कोरी धुंधली यादों में,
विस्तर को तोड़ रहा हूँ मैं,
पलकों की भीगी छाया में,
आंसू को छोड़ रहा हूँ मैं |

जब टूट रहे हैं तारे तो ,
गिरने से कौन बचाएगा?
जब छूट रहे है सारे तो,
मैखाने कोन न जायेगा ?

क्षितिज हमें अब ढूढ़ रहा है,
आसमान की काया में ,
धरती के झूठे घेरे में ,
अम्बर की नीली छाया में |

पर पता नहीं मुझको भी,
मैं कहाँ बिचरनित करता हूँ ?
उनके सपनो में या यादों में,
बाहर आने से डरता हूँ |

तुम कहीं पता मत दे देना,
मैं जीते जी मर जाऊँगा,
उनकी यादों के बल पर,
मैं नया जहान बनाऊँगा |

तुम डरो नहीं, मैं खो जाऊं,
मेरे संग अपना साकी है ,
ख्वाबों की मलिका नहीं है तो,
परियों का आना वाकी है|

बुधवार, 18 नवंबर 2009

इसे पढना आपकी जिम्मेदारी ही नही बल्कि मजबूरी भी है ....


ये एक ऐसा पोथा है जिसे पढ़ना आपकी जिम्मेदारी ही नही बल्कि मजबूरी है जिसमें दफ़न है गरीबी भुखमरी और कई ऐसी पीड़ित जिंदगियां जिनके बारें में सोचना हमारी मजबूरी बन गई है |आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि एक इंजीनियरिंग का क्षात्र इस तरह की घिसी पिटी वकवास क्यों कर रहा है , तो इसमें हैरत की कोई बात नही क्योंकि तकनीकी सिर्फ़ उन गोरे सेठों का ही मुह नही ताक रही जिनके एक इशारे पर सारा युवा नांच रहा है | तकनीकी उन मुरझाए हुए चेहरे को भी देख रही है जिनकी आँखे बड़ा सपना देखने का हुनर पाल रही है , तकनीकी सूखे और बंजर खेत एवं भूखे और लाचार पेटों का भी मुह ताक रही है या फ़िर इसका उल्टा है | मैं ऊपर दिखाए गए चित्र पर बिल्कुल टिप्पड़ी नहीं करूँगा, क्योंकि चित्र अपने आप में ही स्पस्टीकरण है |

अफ्रीका, चीन, भारत और अमरीका के अनाज उत्पादन से जुड़े कुछ आंकड़े इस बात पर सोचने के लिए आपको मजबूर जरुर कर देंगे कि गोरे सेठों की दूकान पर बैठ कर काम करूँ या फ़िर अपना काम जिसे हम हीन भावना से देखते है


उक्त जानकारी के अनुसार मैं यही सिद्ध करना चाहता हूँ कि तकनीकी का प्रयोग भरपूर तरीके से कृषि में भी किया जाना चाहिए | लेकिन बिडम्बना यही है कि हर कंप्यूटर इंजिनियर बिल गेट्स बनाना चाहता है | मैं आज इस पोथे के माध्यम से यही कहना चाहता हूँ कि हमें कृषि की तरफ़ भी अधिक ध्यान देना चाहिए | क्योंकि गरीबी का सबसे बड़ा कारण यही है |

परन्तु भारत की मूल धारा से हमें एक विशेष षड़यंत्र के तहत अलग करने का काम राजनीति कर रही है , हर युवा को यह बात समझनी होगी और इसका मुह तोड़ जवाब देना होगा क्योंकि भारत का विकास करना सिर्फ़ हमारा कर्तव्य है बल्कि इसको शिखर पर पहुंचाने का हुनर भी युवा की खूबी है जिसे राजनीति बखूबी अपने मकसद को पूरा करने के काम में ला रही है |

मेरे साथियो मैं बहुत अधिक जानकारी अपने ब्लॉग के माध्यम से नही दे पाउँगा, मैं आपसे गुजारिश करता हूँ कि आप इन्टरनेट पर समय बिताते समय भारत में कृषि को विकसित करने के उपाय ढूदे और इस तरफ भरपूर ध्यान दे तो निश्चित रूप से ऐसे आंकड़े मिलेंगे जिससे आपका दिल दहल जाएगा | बस इतना और कहूँगा कि हमारी इस बात को अपनी बात बना लो और सारे जहाँ में तूफ़ान की तरह फैला दो |

धन्यबाद !

-रवि शंकर शर्मा

बुधवार, 11 नवंबर 2009

मेरी आशा निराशा के रूप में ...

रात के अंधेरे में जब एक बूँद भी आँसू की नही निकली, तब पता लगा की हमारे दिल की धड़कन इतनी तेज है कि जिसकी आवाज़ से सोना दूभर हो गया | मुझे पता है कि सोना इतना आसान नही होता है, न तुम्हारे लिए न मेरे लिए , कम्वक्त ये रात बनाई ही गई है सोने के लिए | पलक झपकते ही दिल इस तरह दहाड़े मारता है, मानो भूकंप आ गया हो |

ये मेरे निराश होने कि कहानी नही है, ये एक आशा है जिसे आप निराशा के नज़रिए से देख सकते हो क्योंकि मैं हूँ ही कुछ ऐसा | जब खाना खाने बैठता हूँ तो लोग इस बात से हैरान हो जाते है कि क्या खाने के इस तरीके से मैं जिंदा रह पाऊंगा ? लोगों को पेट भरकर खाना खाते देख कर पहले मैं इस तरह निराश हो जाता हूँ जैसे एक भूँखा और लाचार कुत्ता रोटी की आस में मालिक के सामने पूँछ हिलाता रहता है और मालिक फ़िर भी उसे रोटी नही खिलाता है | फ़िर रोज़ सुबह मुझे ये सोचना पड़ता है कि आज किस घर में जाऊं जहाँ पर मेरा पेट भर जाए | पर पागल कुत्ते को क्या कोई रोटी खिलाता है ? :)

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मैं ऐसा क्यों हूँ ? यह सब सोच ही रहा था , तभी अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मुझे लगा कि शायद इसी आशा में मैं जाग रहा था , पर वो तुंरत ही निराशा में बदल गई और मैंने फोन कट कर दिया |

मेरे दोस्त सुजिल ने आज ही एथलितिक मीट में गोल्ड मैडल जीता हाई जम्प में और अपना ही रेकोर्ड तोडा | एक क्षण तो ख़याल आया कि दौड़कर मैं ग्राउंड में चला जाऊं पर मेरी मजबूरी ..... :( और एहसास हुआ कि शायद धीरे धीरे हर चीज़ मुझसे अलग हो रही है या फ़िर मैं छोड़ता चला जा रहा हूँ ? यह प्रश्नचिंह मेरे मुखोटे पर हमेशा सज़ा रहता है | जिसके उत्तर के लिए हर कोई निरुत्तर है | वस लोगों के ढाढ़स ने आशा दी है मुझे , जिसे मैं तहे दिल से स्वीकार करता हूँ | और विश्वास रखता हूँ कि यही ढाढ़स सच है और अपने कदमों को हर रोज़ सुबह विस्तार से नीचे रखता हूँ | यही मेरी आशा है :)