बुधवार, 11 नवंबर 2009

मेरी आशा निराशा के रूप में ...

रात के अंधेरे में जब एक बूँद भी आँसू की नही निकली, तब पता लगा की हमारे दिल की धड़कन इतनी तेज है कि जिसकी आवाज़ से सोना दूभर हो गया | मुझे पता है कि सोना इतना आसान नही होता है, न तुम्हारे लिए न मेरे लिए , कम्वक्त ये रात बनाई ही गई है सोने के लिए | पलक झपकते ही दिल इस तरह दहाड़े मारता है, मानो भूकंप आ गया हो |

ये मेरे निराश होने कि कहानी नही है, ये एक आशा है जिसे आप निराशा के नज़रिए से देख सकते हो क्योंकि मैं हूँ ही कुछ ऐसा | जब खाना खाने बैठता हूँ तो लोग इस बात से हैरान हो जाते है कि क्या खाने के इस तरीके से मैं जिंदा रह पाऊंगा ? लोगों को पेट भरकर खाना खाते देख कर पहले मैं इस तरह निराश हो जाता हूँ जैसे एक भूँखा और लाचार कुत्ता रोटी की आस में मालिक के सामने पूँछ हिलाता रहता है और मालिक फ़िर भी उसे रोटी नही खिलाता है | फ़िर रोज़ सुबह मुझे ये सोचना पड़ता है कि आज किस घर में जाऊं जहाँ पर मेरा पेट भर जाए | पर पागल कुत्ते को क्या कोई रोटी खिलाता है ? :)

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मैं ऐसा क्यों हूँ ? यह सब सोच ही रहा था , तभी अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मुझे लगा कि शायद इसी आशा में मैं जाग रहा था , पर वो तुंरत ही निराशा में बदल गई और मैंने फोन कट कर दिया |

मेरे दोस्त सुजिल ने आज ही एथलितिक मीट में गोल्ड मैडल जीता हाई जम्प में और अपना ही रेकोर्ड तोडा | एक क्षण तो ख़याल आया कि दौड़कर मैं ग्राउंड में चला जाऊं पर मेरी मजबूरी ..... :( और एहसास हुआ कि शायद धीरे धीरे हर चीज़ मुझसे अलग हो रही है या फ़िर मैं छोड़ता चला जा रहा हूँ ? यह प्रश्नचिंह मेरे मुखोटे पर हमेशा सज़ा रहता है | जिसके उत्तर के लिए हर कोई निरुत्तर है | वस लोगों के ढाढ़स ने आशा दी है मुझे , जिसे मैं तहे दिल से स्वीकार करता हूँ | और विश्वास रखता हूँ कि यही ढाढ़स सच है और अपने कदमों को हर रोज़ सुबह विस्तार से नीचे रखता हूँ | यही मेरी आशा है :)

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