रविवार, 19 अप्रैल 2009

ओ लिखने वालो

लिखने वालो
कलम खूब क्या लिखती है, अपने ही खून स्याही से ,
कागज़ के कोरे जीवन को, भरती है मुक्त सदाई से |
लिखने वालों ने स्याही का मतलब और बना डाला ,
भाषा, मजहब, देश निहित में, नंगा नाच नचा डाला |

लिखने वालो तुमसे मेरी , यही गुजारिश है
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, जिसमे गर्भित रंजिश हो |
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, देश धर्म जो गर्हित हो ,
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, जिसमे राष्ट्र विखण्डित हो |

लिख देना तुम जिसमे अपने रिश्तों की परिभाषा हो ,
संस्कृति और सभ्यता को भी जिसमे खूब तराशा हो |
लिख देना तुम जिसमे अपनी मृदु की खुशबू जाए ,
लिख देना तुम कुछ भी ऐसा, राष्ट्र एकता छा जाए |

रवि शंकर शर्मा

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

क्या समझा है पाकिस्तां ने

क्या समझा है पाकिस्तां ने
क्या समझा है पाकिस्तां ने , मेरी भारत माता को ,
भूल गया है बिकल कटक ये माँ बेटे के नाता को |
रामचरित में ठीक लिखा है , महामुनि तुलसी जी ने ,
ये भारत माँ के सपूत थे, जिनको जाया हुलसी ने |
महाकाव्य में लिखा है, उनने ऐसा कलयुग आएगा |
माँ को गाली पिता को लाठी, बेटा खूब लगायेगा |

और लिखा है आगे उनने, भ्रात भ्रात को खायेगा ,
मजहब के पीछे छिप करके, शिष्य गुरु बन जायेगा |
इन्सां रिश्ते नाते भूल के , धन के गुण ही गायेगा ,
दीन दुखियों को कलयुग में, घ्रणा से देखा जायेगा |
यही स्थति पाकिस्तां की, कश्मीर पे उल्टा खाता है ,
भारत माता का कपूत, माँ को गाली दे जाता है |

जो मजहब पर ना चलता है , वही कुफ्र कहलाता है ,
गर्हित होकर वह जगती में, सकल नष्ट हो जाता है |
भूल गया है ये पाकिस्तां, भारत के इतिहास को ,
भगत सिंह और बोष की फौजें, वीरों के आकाश को |
जिनकी एक तबाही से ही, ब्रिटिश हुकूमत भाग उठी ,
तू किस खेत की मूली है, जो काश्मीर पे आँख उठी |

हिम्मत है तो जाओ तुम, समरांगन में लड़ने को ,
भारत माता की मिट्टी में तुम सिर के बल तुम गढ़ने को |
मैं पाकिस्तां को समझाता हूँ पीछे हट जाओ ,
घुसपैठी आतंकबाद को जल्दी ख़तम कराओ |
यदि शेर बहाद्दुर झपट पड़े तो कुछ भी ना बच पायेगा ,
अमरीका का ये चमचा , काफूर कहीं हो जायेगा |

रवि शंकर शर्मा