रविवार, 19 अप्रैल 2009

ओ लिखने वालो

लिखने वालो
कलम खूब क्या लिखती है, अपने ही खून स्याही से ,
कागज़ के कोरे जीवन को, भरती है मुक्त सदाई से |
लिखने वालों ने स्याही का मतलब और बना डाला ,
भाषा, मजहब, देश निहित में, नंगा नाच नचा डाला |

लिखने वालो तुमसे मेरी , यही गुजारिश है
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, जिसमे गर्भित रंजिश हो |
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, देश धर्म जो गर्हित हो ,
मत लिख देना कुछ भी ऐसा, जिसमे राष्ट्र विखण्डित हो |

लिख देना तुम जिसमे अपने रिश्तों की परिभाषा हो ,
संस्कृति और सभ्यता को भी जिसमे खूब तराशा हो |
लिख देना तुम जिसमे अपनी मृदु की खुशबू जाए ,
लिख देना तुम कुछ भी ऐसा, राष्ट्र एकता छा जाए |

रवि शंकर शर्मा

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