रविवार, 3 मई 2009

ख्वाहिश

ख्वाहिश
कुछ पंक्तियाँ ...
मेरी आंखों की ख्वाहिश है, उन्हें जीभर के देखूँगा ,
गुलाबी होश में रहकर, उन्हें बेहोश कर दूँगा |
मैं उनकी खूबसूरत सी, निगाहों में लिपट जाऊं ,
जिक्र आंखों का होगा तो, उन्हें मदहोश कर दूँगा |

उन्ही के भावः देखूँ मैं, उन्ही के ख्वाब देखूँ मैं ,
हवा के झोकों में भी तो, उन्ही की रह देखूँ मैं |
मगर हम मिल नही सकते हैं, कैसी अब ये दूरी है,
हमारे पास तो है वक़्त, मगर उनकी मजबूरी है |

अगर जीभर के देखूँ तो, वो कहते क्या जमाना है ,
कोई बहसी कोई रमता, कोई कहता दीवाना है |
मैं उनको प्यार से देखूँ, तो बोलो क्या बुरा करता ,
कि वो तो गैर के संग है, मुझे इतना बताना है |

रवि शंकर शर्मा

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