शुक्रवार, 15 मई 2009

युवा वर्ग की युवा सोच

क्या यह सही है ...
ख्वाहिशों की लपट ने मुझे इस तरह दबोच रखा है , कि हमारा अतीत क्या है, हमारा वर्त्तमान क्या है, हमारा शिखर क्या है , हमारा प्रखर क्या है जैसे हम सब भूल गए हो | मैं जब भी अपने अतीत के आँचल में होता हूँ , तो यही सच पाता हूँ कि क्या मैं ऐसा था ? जवाब आपके समक्ष है, जिसे न मैं झुठला सकता हूँ न आप | अब सूरज कि हर नई किरण एक आशा बनकर आती है और एक नई ख्वाहिश का उदय हो जाता है, जो निश्चित रूप से सजग है परन्तु कही दुर्बल राह न पकड़ ले इस बात का डर हमेशा लगा रहता है | मेरी ख्वाहिशों ने मुझे इस तरह बर्बाद कर दिया है कि जहाँ से आबाद होने का रास्ता तो नज़र आता है पर इस लुभावने जगत में उस पर चलना मुश्किल हो जाता है | क्या यही सच है कि हम युवा इसी तरह भटकते रहेंगे ? नही, मैं नही मानता हूँ इस तथ्य को | मुझे कई कहानियाँ सुनाई गई, उन सब में मैंने यही पाया कि युवा होने का तजुरवा हर किसी में नही होता है वरना ये झूठी कहानियाँ हमारे समक्ष सीना ताने नहीं खड़ी होती | समाज कि कूटनीतियों ने युवा के हर कदम को ललकारा है | युवा किसी भी दिशा में बह सकता है , समाज ने युवा की इस खूबी को बखूबी मर्यादाओं का किनारा लेकर गहरी खाडी में डूबा दिया | परन्तु आज भी समाज में यह खूबी हिलोरें ले रही है |

आज हमारा देश आह्वान कर रहा है , हम युवाओं से उम्मीद लगाये बैठा है | क्या यह सच नही है कि आज देश को युवा के हर कदम कि जरूरत है जो निडर भावः से आगे बढते जाते हैं | आज समाज पता नही कितने हिस्सों में टूटता जा रहा है जिसमें जातिवाद सबसे बड़ी समस्या रही है, फ़िर उत्तर भारत और दक्षिण भारत की अनवरत अनवन और उत्तर पूर्वी भारत की अलग होने की मुहीम लगातार देश को खाए जा रही है | राजनीति की आपाधापी ने हिंदू और मुसलमानों के बीच में एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी है जिसे तोड़ना जुर्म बन गया है |

हमारे मां - बाप, रिश्तेदार जहाँ तक कि उच्च शिक्षण संस्थान भी सिगरेट , शराब इन सभी चीज़ों पर हर वक्त प्रताड़ना देते आए हैं निश्चित रूप से ये बुराइयां भी दूर होनी चाहिए परन्तु समाज के उन पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए जो हमारी राष्ट्रीय एकता , अखंडता और विश्वास को अधिक क्षति पहुंचा रहे है |

और अंत में मैं अपनी कविता इस पंक्ति से शरू करता हूँ -
मैं वो अभिमन्यु नही हूँ जो गर्भ में चक्रव्यूह से निकलने की कला सीखते- सीखते सो जाऊं |

युवा वर्ग की युवा सोच
निश्ताब्ध घरौंदों से उठकर, अब जाग उजागर दुनिया में ,
मजबूत बना अहसासों को, कुछ काम दिखा अब दुनिया में |
अब प्रकृति रूठ कर बैठ गई, हम तुम्हें मानाने आए है ,
आशा की नीरश खिड़की से, हम तुहें जगाने आए है |
जागो और उठकर देखो, हम गीत अनोखा गा देंगे ,
युवा वर्ग की युवा सोच को, हम पहचान दिला देंगे |

अब उठने दो आंधी , तूफानों का आना बाजिब है ,
बदल रही मृदु की काया, अब धूल धूसरित बाजिब है |
युग - आरब्ध दीर्घ गतिविधियों के, आजन्म सितारों,
तेज सूर्य की तीव्र किरण सी, अपनी सोच उजारो |
हम अपनी ताकत का , सबको अंजाम दिखाएँगे ,
युवा वर्ग की ................................................////

वक्त वफादारी कब करता, कब रुकता है कहने पर,
मृतु कहाँ है झुकने वाली, राजाओं के कहने पर |
मिटटी का kab जोर चला है, दृणित रुद चट्टानों पर,
नदियों ने कब धार बदल दी, toofanon के आने पर|
हम अपनी अडिग सोच के आगे, हर व्यवधान मिटा देंगे ,
युवा वर्ग की ............................................////

रवि शंकर शर्मा

रविवार, 3 मई 2009

ख्वाहिश

ख्वाहिश
कुछ पंक्तियाँ ...
मेरी आंखों की ख्वाहिश है, उन्हें जीभर के देखूँगा ,
गुलाबी होश में रहकर, उन्हें बेहोश कर दूँगा |
मैं उनकी खूबसूरत सी, निगाहों में लिपट जाऊं ,
जिक्र आंखों का होगा तो, उन्हें मदहोश कर दूँगा |

उन्ही के भावः देखूँ मैं, उन्ही के ख्वाब देखूँ मैं ,
हवा के झोकों में भी तो, उन्ही की रह देखूँ मैं |
मगर हम मिल नही सकते हैं, कैसी अब ये दूरी है,
हमारे पास तो है वक़्त, मगर उनकी मजबूरी है |

अगर जीभर के देखूँ तो, वो कहते क्या जमाना है ,
कोई बहसी कोई रमता, कोई कहता दीवाना है |
मैं उनको प्यार से देखूँ, तो बोलो क्या बुरा करता ,
कि वो तो गैर के संग है, मुझे इतना बताना है |

रवि शंकर शर्मा