खाना छोड़ दिया मैंने,
और सोना छोड़ दिया मैंने ,
उनका नशा अनोखा था ,
मैखाना छोड़ दिया मैंने |
अब कोरी धुंधली यादों में,
विस्तर को तोड़ रहा हूँ मैं,
पलकों की भीगी छाया में,
आंसू को छोड़ रहा हूँ मैं |
जब टूट रहे हैं तारे तो ,
गिरने से कौन बचाएगा?
जब छूट रहे है सारे तो,
मैखाने कोन न जायेगा ?
क्षितिज हमें अब ढूढ़ रहा है,
आसमान की काया में ,
धरती के झूठे घेरे में ,
अम्बर की नीली छाया में |
पर पता नहीं मुझको भी,
मैं कहाँ बिचरनित करता हूँ ?
उनके सपनो में या यादों में,
बाहर आने से डरता हूँ |
तुम कहीं पता मत दे देना,
मैं जीते जी मर जाऊँगा,
उनकी यादों के बल पर,
मैं नया जहान बनाऊँगा |
तुम डरो नहीं, मैं खो जाऊं,
मेरे संग अपना साकी है ,
ख्वाबों की मलिका नहीं है तो,
परियों का आना वाकी है|
क्या बात भाई जी , लाजवाब रचना लगी । बहुत खूब
जवाब देंहटाएं"पर पता नहीं मुझको भी,
जवाब देंहटाएंमैं कहाँ बिचरनित करता हूँ ?
उनके सपनो में या यादों में,
बाहर आने से डरता हूँ |"
दूसरी पंक्ति में ’बिचरनित’ ने खटका दिया । देख लें ।
सुन्दर प्रविष्टि । आभार ।
बहुत खूब!! शानदार!!
जवाब देंहटाएंजब टूट रहे हैं तारे तो ,
जवाब देंहटाएंगिरने से कौन बचाएगा?
जब छूट रहे है सारे तो,
मैखाने कोन न जायेगा ?
खूब बहाना ढूंढ लिया मैखाने जाने का ...!!
kya bat hai mere lal ,peele ,gulabi fod diya
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