शनिवार, 5 दिसंबर 2009

शहादत की वकालत

राजनीति की आपाधापी और कुर्शी के लालच ने इंसान को खोखला बना डाला | आज बड़े बड़े राजनेता इस बात पर बहस करते हुए नज़र आते है कि किसे शहादत कहना है और किसे नही कहना है, धर्म और व्यवस्था को तो जैसे मजाक बना डाला हो | तरस आता है मुझे उन धर्माज्ञों ,ऋषियों और मौलवियों पर जिन्होंने धर्म की संरचनाएं कुछ इस ढंग से की हैं कि इंसान इस धर्म के लालच में उन विशेषज्ञों के कहने पर मर मिटने के लिए तैयार है जो राजनीति की कुर्शी पर बैठ कर धर्म के पायदान से होकर गुजरते है और यह भावना जगाते है कि तुम हिन्दू हो , तुम मुशलिम और तुम्हे हमेशा लड़ते ही रहना है | एक तरफ़ तो ये राष्ट्रीय एकता का ढोल पीटते है और दूसरी तरफ़ अयोध्या में सन १९९२ में पनपे बाबरी मस्जिद के विवाद की वकालत आज भी कर रहे है | आप क्या आशाएं लगा सकते है इनसे जो यह कह जाएँ कि १५००० की उस भीड़ में घमाशन दंगे में २००० लोगों की मौत हो जाए और ये राजनेता इन मरे हुए लोगों को शहादत का हार पहना कर चलें जाएँ | हम हिन्दुओं का आक्रोश भले ही खिन्न भिन्न हो गया हो इस शहादत से पर मुझे अभी भी बेहद आक्रोश है इन धर्मज्ञों पर जिन्होंने इन्हे शहादत का ताज पहना दिया | शहीद वो होता है जो बिना किसी धर्म , जाति की परवाह देश को पहुँचने वाले हर आहात से बचाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दे |

आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ संचालक मोहन भागवत चंडीगढ़ से वकालत करते हुए कहते है कि हमें कोई अफ़सोस नही है बाबरी काण्ड का | मैं इनसे कहना चाहता हूँ कि इन्हे किस बात का अफ़सोस होगा उन दो हज़ार मरे हुए लोगों का या फ़िर उन दंगो का जिन्हें बढावा देने में इन्ही लोगों का सबसे बड़ा हाथ होता है | धर्म की मंचों पर बैठे हुए उन धर्मज्ञों से मैं कहना चाहता हूँ कि अब एलान करना बंद कर दे क्या इतना काफी नही है हमारे देश के लिए जो आज भी अपने लालच के लिए देश की जनता को दीमक की तरह खाए जा रहे है |

देश के सबसे बड़े आतंकी हमले मुम्बई में शहीद हुए मोहतराम शर्मा की शहादत पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले समाजवादी पार्टी के अमर सिंह जी उसकी शहादत को बेक़रार कर देते है और कहते है कि उसने वर्दी नही पहनी हुई थी | इन्हे क्या पता कि वर्दी क्या होती है शहादत क्या होती है | ये वर्दी है कोई राजनीति के उस काले धन के पैसे से खरीदी हुई खादी नही है जिसे पहनकर वकालत कर देते है |

यही सब देखने और सुनने के बाद कहता हूँ ....

रामचरित में अवधपुरी का, जो बखान है किया गया ,
रामराज्य और राम की महिमा का गुणगान है किया गया |
तुलसी के अमृत बचनों से , महाकाव्य है भरा पड़ा ,
मेरा शब्दों का तरकश बस, गहवर में है रिक्त पड़ा |

किंतु इतना कह सकता हूँ, मेरे वतन के लोगों ,
वही अवध अब अवध नही है, समझो जानो लोगो |
हिंदू मुशलिम के विवाद का अंत नही हो सकता है,
यहाँ का राजा राम नही अब रावण ही हो सकता है |

मैं हिंदू परिषद् से पुछु क्यों पागल खूब बनते हो ,
मन्दिर बनवाओ का नारा, क्यों बार बार कह जाते हो ?
राजनीति के दंदभेद क्यों धर्मविधान बनते हो ,
रामनरेश की अवधपुरी श्मशान घाट बनवाते हो ?

राजनीति के शर्मसार को , धर्मविधान बना करके ,
अवधपुरी में मन्दिर का व्यंग्य प्रसंग जाता करके |
राजनीति में ये अपना , जड़ अस्तित्व बनाएँगे ,
राजनीति में ये ही तो अग्रग्रंद्य करारे जायेंगे |

मैं राजनीति को क्या क्या कह दूँ उपमाओं का अंत नहीं ,
राजनीति के रखवाले है , अभिनेता तो संत कहीं |
राजनीति में अभिनेता अब अभिनय करने आयेंगे ,
और हमारे संत महात्मा पूजा पाठ रचाएंगे |

राजनीति के नेता ये आवास सांत्वना देते हैं,
ताकि जनमत को आसानी से नेता हर लेते है |
ईश्वर को आवास नही फ़िर कहा हमें मिल पाएगा,
मेरे शब्दों का शरचाप यही पर धरणी में गिर जाएगा |


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