आशाओं के दीपक की, जब बत्ती बुझकर राख हुई,
जब तेल रहा न बाती, तब छाती घुटकर राख हुई |
मेरे अपने अहसासों की, जब मिटटी बनकर ख़ाक हुई,
जब डूब गयी आँखें आँखों में, तो बातें भी नापाक हुई |
उड़ गया अचानक ले भूधर (तूफ़ान), मेरे सपनो की बुनियादें,
दे गया अनोखा पागलपन , कुछ खट्टी मीठी सौगादें |
ये मन है , ये तन है वस् जीवन का आलिंगन है ,
पर आशाओं की कुंजी में, अब जीना व्यर्थ समर्थन है |
अब कौन तराजू रखे, तौलकर देखे अपनी बातों को,
इस चौघेरे चक्मुद के अन्दर, देखे अपनी रातों को |
पर गलत नहीं है कोई, बस व्यस्त लिप्त का जीवन है
सब टूट गया , सब छूट गया फिर भी आशा का कर्धन है|
अब नहीं एक भी पल ऐसा, जब उनकी याद न आती हो ,
अब नहीं एक भी दिन ऐसा, जब बात न उनकी आती हो |
वो छोटी छोटी सी बातें , जब मुझको खूब हसाती है
तब पलभर में पलकों के नीचे, आंसूं देकर जाती है |
"आशाओं के दीपक की, जब बत्ती बुझकर राख हुई,
जवाब देंहटाएंजब तेल रहा न बाती, तब छाती घुटकर राख हुई |
मेरे अपने अहसासों की, जब मिटटी बनकर ख़ाक हुई,
जब डूब गयी आँखें आँखों में, तो बातें भी नापाक हुई"
२४ की उम्र में इतनी प्रखर लेखनी - हार्दिक शुभकामनाएं एवं शुभ आशीष.
बहुत बढ़िया रचना.
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई बहुत अच्छी रचना .......
जवाब देंहटाएंawsome yaar!!!
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