मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

उड़ गया अचानक ले भूधर

आशाओं के दीपक की, जब बत्ती बुझकर राख हुई,
जब तेल रहा न बाती, तब छाती घुटकर राख हुई |
मेरे अपने अहसासों की, जब मिटटी बनकर ख़ाक हुई,
जब डूब गयी आँखें आँखों में, तो बातें भी नापाक हुई |

उड़ गया अचानक ले भूधर (तूफ़ान), मेरे सपनो की बुनियादें,
दे गया अनोखा पागलपन , कुछ खट्टी मीठी सौगादें |
ये मन है , ये तन है वस् जीवन का आलिंगन है ,
पर आशाओं की कुंजी में, अब जीना व्यर्थ समर्थन है |

अब कौन तराजू रखे, तौलकर देखे अपनी बातों को,
इस चौघेरे चक्मुद के अन्दर, देखे अपनी रातों को |
पर गलत नहीं है कोई, बस व्यस्त लिप्त का जीवन है
सब टूट गया , सब छूट गया फिर भी आशा का कर्धन है|


अब नहीं एक भी पल ऐसा, जब उनकी याद न आती हो ,
अब नहीं एक भी दिन ऐसा, जब बात न उनकी आती हो |
वो छोटी छोटी सी बातें , जब मुझको खूब हसाती है
तब पलभर में पलकों के नीचे, आंसूं देकर जाती है |

4 टिप्‍पणियां:

  1. "आशाओं के दीपक की, जब बत्ती बुझकर राख हुई,
    जब तेल रहा न बाती, तब छाती घुटकर राख हुई |
    मेरे अपने अहसासों की, जब मिटटी बनकर ख़ाक हुई,
    जब डूब गयी आँखें आँखों में, तो बातें भी नापाक हुई"
    २४ की उम्र में इतनी प्रखर लेखनी - हार्दिक शुभकामनाएं एवं शुभ आशीष.

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक बधाई बहुत अच्छी रचना .......

    जवाब देंहटाएं