शुक्रवार, 5 जून 2009

जेरोक्स की जिंदगी

ये बात कोई याद रखने वाली है क्या, जिसे अब हमने अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया हो | कॉलेज के बाद कॉलेज का कुछ याद रहे या ना रहे पर मैं दो चीजें नही भूल सकता हूँ एक तो बंटी की जेरोक्स की दुकान और दूसरी कोमल के नोट्स जिसे पढ़कर आधी से अधिक क्लास पास होती है | अब ये कोई चौकने वाली बात तो है नही , ये बात सारा उपकरनन एवं नियंत्रण अभियांत्रिकी समाज जानता है कि कोमल ही अब हमारे पास होने का एक मात्र सहारा है | मुझे लगता है बस यह दो बातें है जो हमारी डिग्री पुरी होने में मदद दे रही है | मैं नही भूल सकता हूँ उस पढाकू लड़की को जिसने किताबों के चौराहे पर खड़ी जिंदगी को नोट्स के रूप में एक नई दिशा दी | और यह चेतना जगाई कि राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जालंधर में पास ही नही बल्कि 8 पॉइंटर बनने के लिए भी नोट्स की ही जरुरत होती है | चाहे उदित हो या दीनू पर कोमल का दरवाजा हर कोई खटखटाता है | इस तरह हमारी जिंदगी जेरोक्स की जिंदगी हो गई , आशय यह है की इंजिनियर कोई और बना , हम तो बस एक इंजिनियर की जेरोक्स कॉपी है |

कोमल की दानवीरता पर एक शेर अर्ज है -------

यह सच है पर दुर्बल मन है, मुझको भी यह सहना था ,
कोमल की आंखों में जाकर, मुझको भी कुछ कहना था |
काश! अगर जेरोक्स कहीं, तुमने दिए होते मुझको ,
मेरी भी एक 5 पॉइंट सम वन, मिलती पढ़ने को सबको |

- रवि शंकर शर्मा


3 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल के अधिकतर इंजीनियर्स का यही हाल है.....इसलिए चिंता छोडिये और बस लिखते रहिये....
    ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है...........मेरी शुभकामनाएं साथ हैं.....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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  2. hamaari engineering ki padai aise hi hoti hai. bas photocopy ki dukan aur notes wali ladki ke naam badal jaate hain..

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