बुधवार, 30 जनवरी 2013

 मेरा अभिमान

सौजन्य हिमालय सा सुख है ,
तेरे आलिंगन का रुख है ।
तू तारों की परिभाषा है ,
तू जीवन की अभिलाषा है ।

तू मेरी मिटटी का सोना है ,
आँगन का एक खिलौना है ।
तेरी चाहत के फूलों में ,
मैं रौंध गया हूँ शूलों को ।

तू हृदय क्रांति का मंथन है ,
घर के दीपक का अंकन है।
तू चले हवाओं से आगे ,
आकाश तुझे छोटा लागे ।

सूरज सा तेज रहे तेरा ,
चन्दा सा शीतल हृदय तेरा ।
तारों सी चमक रहे हरदम,
तू धरती पर अभिमान मेरा ।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें