सोमवार, 5 अप्रैल 2010

भाई बनना इतना आसान नहीं

आज का चिटठा आपके ह्रदय की मार्मिक कहानी को छू करके यादों के उस गहरे सागर में डूब जायेगा जिसकी व्यथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जालंधर की लवर स्ट्रीट (यह वो सड़क है जो इंडस्ट्रियल डिपार्टमेंट और टेनिस कोर्ट के बीच में है जिसने इश्क की कामयाबी और नाकामयाबी के सभी मंजर देखे है )से शुरू होती है | यहाँ पर कई रिश्ते बने और कई रिश्ते टूटे | इस सड़क के दोनों छोर पर दो ऐसे तिराहे है जहाँ पर मनुष्य एकाकी हो जाता है और अपनी दिशायें निर्धारित कर लेता है | और ऐसे कई उदाहरण है जिसमे लोगो ने अपनी परिभाषाएं बदली , आशाएं बदली यहाँ तक कि कई सिविलियन तो आत्म श्रुति करते हुए भावनाओं के उस गहरे मंजर में डूबे हुए है जिससे बाहर निकलने की किसी को कोई आशा नहीं है | यहाँ पर कुछ रिश्ते प्यार से बनते है, कुछ रिश्ते मजबूरी से और कुछ रिश्ते तो सिर्फ आत्मसंतुष्टि में ही निपट कर रह जाते है |

परन्तु मैं सिर्फ मजबूरी से बने रिश्ते की बात कर रहा हूँ और इस पवित्र रिश्ते का नाम है कॉलेज में न चाहते हुए बनाया गया भाई - बहिन का रिश्ता | और ये हमारी आप बीती नहीं बाप बीती है, आशय यह है कि यह प्रथा हमारे गोडजिला जैसे सीनिअर्स या यूँ कहें कि बाप दादाओं के जमाने से चली आ रही है | ऐसे खुशनसीब बहुत कम है जिन्होंने इन रिश्तो की खातिर विदिपुर में आंसुओं की नदियाँ न बहाई हों | इतिहास गवाह है कि इन रिश्तों की खातिर कई महासंग्राम हुए हैं जिनमे से एक है महाभारत | और इस महाभारत के मुख्य नायक एक ऐसे सज्जन व्यक्ति रहे है जिन्होंने माते की उपासना तो छोडो मजबूरी की संध्या की रौनक में भाई बनकर भी द्रौपदी का किरदार बखूबी निभाया है | और त्रिया चरित्र तो देखो कि जब जब महाभारत होगा तब तब द्रौपदी का चीर हरण तो होगा ही | और क्या कहूँ इस चीर हरण में हमारे नायक वासना की छोड़ो आसना के बसीभूत होकर रह गए |

महानता की पराकाष्ठा में शब्दों की सीमाएं नहीं होती | मैं ऐसे इंसान की बात कर रहा हूँ जो इंसान के रूप में स्वयं कृष्ण है जिन्होंने वृन्दावन की हर गोपी के इर्द गिर्द बांसुरी बजाई परन्तु दुर्भाग्य तो देखो ये भी नहीं सोचा कि ये कलयुग की गोपियाँ है और यही कारण है कि वासना के वसीभूत हमारे कलयुगी कृष्ण सभी गोपियों के भाई बनकर रह गए, और दूसरों की बासुरियों की धुन पर नाचते हुए सभी बहिनों के कल्याणकारी कार्यों में जुट गए |

हमें ऐसे भाइयों के प्रति बेहद संवेदना है और आशा करता हूँ कि शादी के पश्चात यह स्थिति न बने | जीवन के अनगिनत सत्य इन रिश्तों की छाया में इस तरह छुपे हुए है कि जिनकी मर्यादाओं ने लेखक को भी उस नूतन सत्य से बचा नहीं पाया जिसे वह हमेशा से छुपाने की कोशिश कर रहा था | मर्यादाओं की चपेट में बैठा लेखक आज द्रष्टिहीन हो गया है , शब्दहीन हो गया है कि उसे ये भी नहीं दिखता है है कि इन्दस्त्रिअल समाज के साथ जो बुरा हो रहा है कि उस पर ध्यान दे और उनकी संवेदना को समझे जहाँ पर लड़की कमी यहाँ तक खल जाती है कि हर व्यक्ति के ह्रदय में निदय भावनाएं किसी व्यक्ति विशेष के रूप में हर दिन टेबल बदलती रहती है और वही पर किसी लड़की के विशेष समूह द्वारा दुत्कारा गया यह समाज कहाँ जाए जिनकी बजह से डरे हुए इस समाज ने यहाँ तक DS पर भी जाना बंद कर दिया | मैं आज इस समाज के प्रति बेहद भावुक हूँ और अत्यधिक सहानभूति है कि ये लोग करें तो क्या करें |

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

लेखक कठघरे में

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जालंधर के अतिभ्रमण के क्रमांक में कुछ ऐसे पहलु खड़े हो जाते है कि जिन पर अत्यधिक विश्वास और निष्ठां के साथ मनोरंजन के महल में बैठा लेखक यही सोचता रहता है कि मुझे उन सभी निष्ठावानों से माफी मांगनी चाहिए जिन्होंने मेरा पिछला ब्लॉग पढ़कर बस यही सोचा होगा कि कमवक्त मेरा नाम क्यों नहीं है कि मेरी भक्ति में क्या कमी रह गयी ? मुझे तो परमेश्वर की कृपा से सिर्फ फोन पर ही धमकाया गया, वरना जीवन के इस एतिहासिक समय में एक ऐसा चक्रव्यूह रचा जा सकता था या सकता है कि जिससे बाहर निकलने की कोशिश में लेखक के बचे हुए करीब - महीने बीत जाते |

आज लेखक कठघरे में है परन्तु सच्चाई को सरल भाव में और सजगता पूर्ण ढंग से आप सभी तक पहुंचाना मेरा कर्त्तव्य है और में अपने कर्त्तव्य को सही ढंग से निभाने में हमेशा सफल रहूँ ऐसी शक्ति और ऊर्जा की कामना मैं आप सभी से करता हूँ | हालांकि अंतिम वर्ष के चंद महीनों के कुछ पहलु सुबह की सैर में कुछ इस तरह बीत जाएंगे मानो अतीत के आनंद की शिखाओं का पीछा करते हुए चेन्नई से कलकत्ता तक पहुँच कर किसी समूह के दामाद बन बैठे हों | हालांकि इसी क्रम में कुछ पहलु इस तरह जुड़े है कि जिनकी खबर दिव्य ज्योति में विलीन होकर मस्ती (मस्की ) में झूमती हुई दिल के टुकड़ों के साथ संस्थान के वातावरण में इस तरह छा गयी कि जिसकी खुशबू से कोलाहल सा मच गया है | हालांकि समय के अनुसार उक्त घटना को सार्थक रूप से अंजाम देने के लिए पांडे और वीरे को दोसी ठहराया गया है | आपको बता दूं पांडे वह षड्यंत्रकारी और राजनीतिज्ञ है जिसने सारे अंतिम वर्ष के छात्रों के साथ गठजोड़ बनाकर अपने आप को दुनिया की नज़रों से अलग कर रखा है, मैं चाहता हूँ कि ऐसे व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए |

वीरा और लड़की नदी के दो ऐसे किनारे है जो कभी मिल नहीं सकते, और जब जब ऐसा हुआ है तब तब वीरा के जीवन की नदी कि धार सी टूट गयी हो , साँसे थम सी जाती है गालियों का कोलाहल तो इस तरह थम जाता है जैसे रात में पक्षियों के चहचहाहट की आवाज़ थम जाती है |

समय के बारे में मैं तुम्हें क्या बताऊँ वैसे तो समय की उपाधि बहुतों को दी गयी है परन्तु मैं उस सर्वज्ञ समय की बात कर रहा हूँ जो फूलों के पराग से उस रस का सेवन करता है जिसकी महक तक भवरों ने नहीं ले पाए| चाहे वो मस्की - IIT से जुडी हुई डी फेक्टर की घटनाएं हो या मोटे की गटर में तैरने के विकास सम्बन्धी बातें हो |

समय के अनुसार लड़कियों के एक समूह के द्वारा दी गयी धमकी से इंडस्ट्रियल के सभी छात्र अंडर ग्राउंड है

क्या समय के रहते हुए अब लेखक को कठघरे में होना चाहिए ?

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

ख़ास चर्चा -माते से माइंडलेस मोटे तक

माते की सीमित अनुकम्पा में मैं इंजीनियरिंग भूगोल के उस भाग की बात कर रहा हूँ जिसे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जालंधर के नाम से जाना जाता है | और इस पवित्र स्थल पर समाधी विलीन माते कई तपस्वी और चरितार्थियों को अपनी तीव्र निगाहों और जटाओं स्वरूपी त्रिज्या में लपेटे हुए वृत्ताकार परिधि में लगातार 4 साल से घुमा रही है | इन तपस्वियों की महानता की पराकाष्ठा में कुछ परिवार माते की शरण में इस तरह शरीक होते हैं, चाहे वो किसी गुप्ता खानदान से आए हों, या किसी मिलन समारोह से | इतना ही नहीं भारत का अभिन्न परन्तु दूर-दराज उत्तर-पूर्वी भाग भी माते की असीम कृपा से अछूता नहीं रहा है | हालांकि माते की भक्ति में डूबने वाले कई ऐसे गोताखोर भी है जो तटवर्ती स्थलों के बहुत ही प्रखर समुद्री तैराक भी रहे है | माते की चरण -रज कुछ लोगों ने इस तरह पखारी है कि कई लोग अतीत के आनंद में विलुप्त होकर घर के पायदान पर भी माथा टेक कर आये है | हालांकि आप सभी लोग एक ऐसे उपासक से जरूर वाकिफ होंगे जिसकी उपासना ने केवल तपस्वियों की तपस्या भंग की है वल्कि अपनी सज्जन ता से माते को भी अपने बस में किया है | और आज मैं ऐसे माते-उपासक के रिश्ते को सादर नमन करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि आने वाले चाँद महीनों में निरह एवं नि:संदेह इस संदेह में डूबे हुए शरणार्थियों को इस संदेह से मुक्ति मिल जायेगी और अपना जीवन यापन शालीनता और विसमता के साथ निर्वाह कर सकेंगे |

इसी क्रम में सामिल करते हुए एक नए किरदार के बारें मैं जरूर बताना चाहता हूँ जिसे मि. डिपेंडेंट ने फोन बाबा की उपाधि दी है | लेखक इस फोन बाबा की फोन समाधी के आगे नतमस्तक है और आशान्वित है कि जब समाधी से जागेंगे तो कई प्रार्थियों पर इनकी कृपा होगी जो इनके भोग में प्याज मिर्च मेगी लिए कई महीनों से खड़े है | ध्यान रहे बाबा सिर्फ और सिर्फ प्याज मिर्च मेगी खाते है | अरे हाँ आप सोच रहे होंगे कि लेखक ने मि. डिपेंडेंट के बारे में तो बताया ही नहीं , यह इस कहानी का वो किरदार है जिसकी डसने की महानता के चर्चे ने नाग देवता की महानता को भी ललकारा है | ये परिसर या परिसर के बाहर किसी को भी किसी भी वक्त कही पर भी डस लेते है | और इनके भारी भरकम शरीर को सतह देने के लिए हमेशा एक दूसरे शरीर की जरूरत होती है | यही कारण है कि इन्हें मि. डिपेंडेंट कहा जाता है |

क्या आपने कभी किसी मेढक को पीठ के भर लेटा हुआ देखा है ?


मैं इसी तरह सोने की बात कर रहा था | और हाँ अगर नहीं देखा है तो आइए कमरा . 144 , हॉस्टल . 6 में माइंडलेस मोटे को इसी अवस्था में सोते हुए देखे | बस फर्क इतना है जो हाथ ऊपर दिखाए गए चित्र में पेट पर है माइंडलेस मोटे का हाथ कहीं और होता है बाकी आप खुद समझदार है | कमरे में घुसते समय आपको कुछ सावधानियां बरतनी होंगी जो निम्नलिखित है -
1. सिर्फ और सिर्फ विस्तर पर निगाहें रखें | इधर या उधर देखने से आपको अवांछनीय पदार्थ भी नज़र सकते है
2. जमीन पर पड़े किसी कागज़ अथवा खाली डिब्बी को न उठाएं |
3. और अधिक जानकारी के लिए मिलें मि.डिपेंडेंट से जिनकी असावधानियाँ आपको सभी सावधानियों से अवगत करा देंगी |

ऊपर बताया गया विवरण मात्र परिभाषाएं है सभी किरदारों की | अधिक जानकारी के लिए मिलते रहे इसी ब्लॉग पर |
धन्यवाद !

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

उड़ गया अचानक ले भूधर

आशाओं के दीपक की, जब बत्ती बुझकर राख हुई,
जब तेल रहा न बाती, तब छाती घुटकर राख हुई |
मेरे अपने अहसासों की, जब मिटटी बनकर ख़ाक हुई,
जब डूब गयी आँखें आँखों में, तो बातें भी नापाक हुई |

उड़ गया अचानक ले भूधर (तूफ़ान), मेरे सपनो की बुनियादें,
दे गया अनोखा पागलपन , कुछ खट्टी मीठी सौगादें |
ये मन है , ये तन है वस् जीवन का आलिंगन है ,
पर आशाओं की कुंजी में, अब जीना व्यर्थ समर्थन है |

अब कौन तराजू रखे, तौलकर देखे अपनी बातों को,
इस चौघेरे चक्मुद के अन्दर, देखे अपनी रातों को |
पर गलत नहीं है कोई, बस व्यस्त लिप्त का जीवन है
सब टूट गया , सब छूट गया फिर भी आशा का कर्धन है|


अब नहीं एक भी पल ऐसा, जब उनकी याद न आती हो ,
अब नहीं एक भी दिन ऐसा, जब बात न उनकी आती हो |
वो छोटी छोटी सी बातें , जब मुझको खूब हसाती है
तब पलभर में पलकों के नीचे, आंसूं देकर जाती है |